ये पुछक्कड़ लगता है फिर से कठिन सवाल पूछ के भाग गया. सवाल पूछे तो पुछक्कड़ और जनता के अण्डे-टमाटर झेले बुझक्कड़, ये कहाँ का न्याय है? पंकज भाई ने तो सीधे-सीधे हाथ खड़े कर दिये. वैसे समीर जी को भी उत्तर नहीं पता था, पर वो घुमाते-घुमाते डकैतों की बस्ती में ले गये! सागर भाई ने सही जगह पर सही अक्ल लगा दी, इतना तो पता लगा ही लाये कि खज़ाना कहाँ छिपा है. तो इसी बात के लिये बधाई ले लीजिये सागर भाई!
दिये गये मानचित्र में रंग भरने का आधार था जिनी सूचकांक! बड़ा अजीब सा नाम है यह तो, पर यह आखिर है क्या? आइये जानने का प्रयास करते हैं. भारत के परिप्रेक्ष्य में भी इस सूचकांक की चर्चा करेंगे.
बचपन में गणित की कक्षा याद आती है जब मास्टरजी सवाल पूछते थे, “रामू, तुम्हारी कक्षा में २५ छात्र हैं. अगर मैं तुम्हें ५० संतरे दूँ और कहूँ कि अपनी कक्षा में बाँटो तो हर एक के हिस्से में कितने संतरे आयेंगे?” रामू झट से जवाब दे देता था, “२ संतरे मास्टरजी”. लेकिन रामू को शायद पता नहीं होता था कि दुनियाँ में बंटवारे का गणित इतना आसान नहीं होता. जी हाँ, आज बड़ी से बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की समस्या है सम्पत्ति का असमान वितरण. आज आम आदमी यह कहने से कतई नहीं चूकता कि भारत में अमीर और अमीर होता जा रहा है, तथा गरीब और भी गरीब. पर इस कथन के में सत्य कितना है, इसे भी समझने का प्रयास करेंगे.
कल्पना कीजिये दो विपरीत परिस्थितियों की – पहली जिसमें सम्पत्ति का वितरण सभी लोगों में बराबर-बराबर है, कुछ कम ज़्यादा नहीं, एकदम रामू वाला गणित! और दूसरी परिस्थिति जिसमें सारी सम्पत्ति एक ही व्यक्ति के पास संचित है और बाकी सबके पास कुछ भी नहीं. जिनी सूचकांक किसी भी प्रकार के वितरण को संख्यात्मक रूप से दर्शाने के लिये ० और १ के बीच का एक अंक होता है. पहली (पूर्णत: समान) वितरण की स्थिति का जिनी सूचकांक होता है ० और दूसरी (पूर्णत: असमान) वितरण की स्थिति का जिनी सूचकांक होता है १. पर व्यवहारिक स्थिति तो कुछ बीच की ही होती है, और जैसा कि आप समझ ही गये होंगे कि जिनी सूचकांक जितना कम होता है अर्थव्यवस्था में संपत्ति का बंटवारा उतना ही समान होता है. मान लीजिये कि सबसे गरीब १०% लोगों के पास कुल सम्पत्ति की मात्र २% पूँजी है, सबसे गरीब २०% लोगों के पास ८%, और इसी प्रकार आगे चलते हुये यदि सांकेतिक रूप में कहें तो सबसे गरीब क% लोगों के पास ख% पूँजी है. यह स्पष्ट है कि क का मान ख के मान से कभी कम नहीं होगा, और सम्पूर्ण समानता की स्थिति में क और ख का मान हमेशा बराबर होगा. अब इन्हीं बिंदुओं (ख,क) को जोड-जोड़कर जो वक्र बना उसको कहिये लॉरेंज़ वक्र. जिनी सूचकांक सम्पूर्ण समानता की रेखा “ख = क” और लॉरेंज़ वक्र के बीच का क्षेत्रफ़ल का दुगना होता है. किसी भी तंत्र की असमानता को इस प्रकार संख्यात्मक रूप से निरूपित करने का विचार सबसे पहले १९१२ में इतालवी सांखिकीयविद और समाजशास्त्री कोराडो जिनी के दिमाग़ में आया और आज यह किसी भी देश के सम्पत्ति वितरण में असमानता मापने का मानक तरीका है.
अब बात करते हैं कुछ चुनिंदा देशों के जिनी सूचकांक की.
- भारत: ०.३२५
- चीन: ०.४४
- संयुक्त राज्य अमेरिका: ०.४५
- रूस: ०.३९९
- दक्षिण कोरिया: ०.३५८
- ब्राज़ील: ०.५९७
स्पष्ट है कि भारत में पूँजी का वितरण अन्य कई विकासशील देशों और विकसित देशों की तुलना में आधिक समान है, और हममें से अधिकांश अभी भी रटा-रटाया वाक्य कह देते हैं कि हमारे देश में सारा पैसा अमीरों के पास ही संचित है, जो कि अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में सही नहीं है. हमारी स्थिति निश्चित ही बेहतर है. न सिर्फ़ बेहतर है, बल्कि दिन-प्रतिदिन और भी सुधर रही है.
“भारत में अमीर और अमीर होता जा रहा है, तथा गरीब और भी गरीब”, इस छपे-छपाये, रटे-रटाये कथन का विश्लेषण करेंगे अगले अंक में. भारत की सम्पत्ति है उसके जी.डी.पी. से कहीं अधिक! कैसे? यह भी जानेंगे अगले अंक में.
साभार: वोलफ़्राम पर जिनी सूचकांक का पृष्ठ, विकिपीडिया पर जिनी सूचकांक का पृष्ठ, विभिन्न देशों का जिनी सूचकांक