कहानी दो अंकों की
जनवरी 21, 2007कला और विज्ञान को आमतौर पर अलग-अलग श्रेणियों में रखा जाता है. अंग्रेज़ों द्वारा तैयार की गयी वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली में भी दोनों विषय माध्यमिक स्तर पर ही अलग कर दिये जाते है. क्या कला और विज्ञान साथ-साथ नहीं चल सकते? अगर कोई कहे कि कम्प्यूटर क्रांति कला की एक बड़ी देन है तो उस व्यक्ति पर निश्चित रूप से संदेह की दृष्टि से देखा जायेगा!
कला और विज्ञान का एकात्म स्वरूप के ईसा से कोई ५०० वर्ष पूर्व भारतीय विद्वान पिंगल को विदित था. यदि कहें कि कम्प्यूटर क्रांति का स्रोत पिंगल की इसी सोच में छिपा है, तो गलत न होगा! कैसे? आइये जानने का प्रयास करें.
कम्प्यूटर जो भी कुछ करता है, उसमें एक गणना छिपी होती है. अब एक निर्जीव वस्तु गणना कैसे करे, और उस वस्तु को गिनती समझायी जाय तो भला कैसे! यह सब संभव है द्विअंकीय प्रणाली के माध्यम से. ये दो अंक १ और ० हार्ड डिस्क के किसी क्षेत्र के चुम्बकीयकृत होने या न होने को निरूपित कर सकते हैं या सी.डी. के किसी स्थान पर प्रकाश के ध्रुवीयकरण की दो अलग अवस्थाओं को भी. अब प्रश्न यह है कि इसमें कला कहाँ से आ गयी? तो जवाब है कि यह विचार कि किसी वस्तु की दो अवस्थाओं के आधार पर कोई भी कठिन से कठिन गणना संभव है, कला से ही आया. अब सोचिये न, ये दो अवस्थायें कविता में प्रयोग किये जाने वाले छन्दों के किसी स्थान पर लघु अथवा गुरु होने का निरूपण भी तो कर सकतीं हैं! द्विअंकीय सिद्धान्त यहीं से आया! पिंगल के छन्द शास्त्र में पद्यों में छिपे इस सिद्धान्त का वर्णन बहुत सहजता और वैज्ञानिक ढंग से किया गया है.
पिंगल ने कई छन्दों का वर्गीकरण आठ गणों के आधार पर किया. इस वर्गीकरण को समझने के लिये पहले देखें एक सूत्र: “यमाताराजभानसलगा“. यदि मात्रा गुरु है तो लिखें १ और यदि लघु है तो ०. अब इस सूत्र में तीन-तीन अक्षरों को क्रमानुसार लेकर बनायें आठ गण,
- यगण = यमाता = (०,१,१)
- मगण = मातारा = (१,१,१)
- तगण = ताराज = (१,१,०)
- रगण = राजभा = (१,०,१)
- जगण = जभान = (०,१,०)
- भगण = भानस = (१,०,०)
- नगण = नसल = (०,०,०)
- सगण = सलगा = (०,०,१)
अब ये आठ गण यूँ समझिये कि हुये ईंट, जिनसे मिलकर कविता का सुंदर महल खड़ा है. इन ईंटों का प्रयोग करके बहुत से सुंदर छन्द परिभाषित और वर्गीकृत किये जा सकते हैं. यही नहीं, ये आठ गण ० से लेकर ७ तक की संख्याओं का द्विअंकीय प्रणाली में निरूपण कर रहे हैं, सो अलग. और तो और इनमें गणित की सुप्रसिद्ध द्विपद प्रमेय [Binomial Theorem] भी छिपी बैठी है! यदि ल और ग दो चर हैं [या दो अवस्थायें हैं], तो (ल+ग)३ के विस्तार में ल२ग का गुणांक = उन गणों की संख्या जिनमें दो लघु तथा एक गुरु है = ३ [जगण, भगण, सगण]. तो इस प्रकार (ल+ग)३ = ल३+ ३ल२ग+ ३लग२+ ग३.
छन्दों से गणित और कम्प्यूटर विज्ञान का यह रास्ता पिंगल ने दिखाया. क्या यह एक संयोग ही है कि छन्दों के अध्ययन में भी हम विश्व में अग्रणी रहे और आज २५०० वर्षों के बाद कम्प्यूटर विज्ञान में भी अपनी सर्वोत्कॄष्टता सिद्ध कर चुके हैं! शायद यह सब हमारे उन पुरखों का आशीर्वाद है जिनकी कल की सोच की रोशनी हमारे आज को प्रकाशित कर रही है.
“क्या यह एक संयोग ही है”
नहीं, जेनेटिक लोचा है.
द्वारा संजय बेंगाणी जनवरी 21, 2007 at 9:19 पूर्वाह्नvaah bhai….
द्वारा Ravindra Bhartiya जनवरी 21, 2007 at 8:48 अपराह्नअच्छा लगा बड़ी जटील विषय को समग्रता से प्रस्तुत किया…धन्यवाद
द्वारा Divyabh जनवरी 21, 2007 at 9:08 अपराह्न🙂 हंसूं कि रोऊं
द्वारा समीर लाल जनवरी 22, 2007 at 5:37 पूर्वाह्नAaapne bahut hee saral tarike se aisy kathin baat ko samajha diya hai, jisase mujhe bahut ashcharya hua. Aap dwara doosaron ko samjhane ka yah tarika kabile tarif hai.Mujhe swayam yah sab jankari nahee thi. Hame garva hon chahiye ki hamare aapake sabake purakhe aur bade bujarga aisi kamal ki baat saunp gaye hai jo garva karane yogya hai. Ham pahale bhi Vishva mein bauddhik roop se aage the ab bhavishya mein bhi aage rahenge. Aap sab ko meri taraf se hardik badhai.
द्वारा Dr. DBBajpai अप्रैल 4, 2007 at 10:32 पूर्वाह्नUttam mitra ! Mein sanghanak tatha ganita ke kshetra mein hi karyarata hoon; tathapi mujhe is vishaya ka pata nahin tha. Aapke is lekh se he mein yeh jan paaya hoon. Aapko meri taraf se haardik dhanyavaad.
द्वारा rajesh अक्टूबर 20, 2009 at 11:04 पूर्वाह्नVaah Bhai,
द्वारा Gopal Kumar अगस्त 19, 2010 at 8:31 अपराह्नBharat ne hee to 0 aur . diya tabhee to ye duniyaan Chand par pahuch sakee aur ek angrez hain ki apane ko bahut bade hoshiyaar samajhate hain.
Jai Hind! Jai Bharat.